गिरमिटिया -वीडियो
गिरमिटिया -वीडियो गिरमिटिया - देश के बाहर जाकर नाम रोशन करने वाले भारतीयों की कहानी १८३० आते-आते दास प्रथा ख़त्म होने लगी थी और अंग्रेजों को अपने बगानों पर काम करने के लिए मज़दूरों की ज़रुरत पड़ी तो उन्होंने हिंदुस्तानियों को भारी मात्रा में गिरमिटिया बनाकर मॉरिशस, फिजी, ब्रिटिश गुयाना, डच गुयाना, ट्रिनीडाड, नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) भेजना चालू कर दिया। जिस कागज पर अंगूठे का निशान लगवाकर हर साल हज़ारों मज़दूर अन्य देशों को भेजे जाते थे, उसे मज़दूर और मालिक `गिरमिट' (`एग्रीमेंट' शब्द का अपभ्रंश) कहते थे और इसी दस्तावेज के आधार पर मज़दूर गिरमिटिया कहलाते थे। शुरू में ५ साल का क़रार होता ८ रुपये महीने की पग़ार पर काम करने का। पर बाद में ये क़रार बढ़ता हीं जाता, गिरमिटिया देश वापस नहीं आ पाता और अंत में परदेस की माटी पर हीं दम तोड़ देता। पर इन्ही गिरमिटियों की आने वाली पीढ़ियों ने संघर्ष किया, मेहनत की और आगे जाकर परदेस की बाग़डोर संभाली। ये श्रंखला समर्पित है उन गिरमिटियों को - उन हिंदुस्तानियों को जिन्होंने देश के बाहर जाकर आसमानों सी पहचान दी देश को। गंगा रे जम...